Primary ka master: teachers अविश्वास: एक सामाजिक भ्रांति

Primary ka master: teachers अविश्वास: एक सामाजिक भ्रांति

 शिक्षकों पर अविश्वास: एक सामाजिक भ्रांति

समाज में शिक्षकों को लेकर एक विचित्र प्रकार का अविश्वास व्याप्त है, मानो वे बच्चों को सिखाने में सक्षम न हों और अपनी जिम्मेदारियों को ढंग से निभाने में अक्षम हों। जब भी उनके कंधों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की बात आती है, समाज की ओर से संदेह भरी आवाजें उठने लगती हैं। यह धारणा बन चुकी है कि शिक्षक अपने निर्णय खुद लेने में असमर्थ हैं और उन्हें केवल निर्देशों का पालन करने तक ही सीमित रहना चाहिए। 




ऐसा मान लेना कि शिक्षक कक्षा में ढंग से निर्णय नहीं ले पाएंगे, न केवल उनके आत्म-सम्मान पर आघात करता है, बल्कि शिक्षाशास्त्र के मूलभूत सिद्धांतों का भी अपमान है। शिक्षणशास्त्र इस बात पर जोर देता है कि शिक्षण एक रचनात्मक और लचीली प्रक्रिया है, जो छात्रों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं और रुचियों के अनुसार ढलनी चाहिए। शिक्षकों को उनकी कक्षाओं में फैसले लेने की आजादी मिलने पर वे छात्रों के लिए बेहतर सीखने का वातावरण तैयार कर सकते हैं। 

शिक्षक का दायित्व केवल पाठ्यपुस्तक पढ़ाना नहीं, बल्कि प्रत्येक बच्चे की विशेष आवश्यकताओं को समझकर शिक्षण सामग्री का चयन करना और उनके सीखने के तरीके में बदलाव लाना है। यह कार्य तभी संभव है जब शिक्षकों को स्वतंत्रता और विश्वास दिया जाए। परंतु, जब समाज और प्रशासन शिक्षकों पर संदेह करता है, तो उन्हें केवल निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य कर दिया जाता है। इससे न केवल उनकी निर्णय लेने की क्षमता बाधित होती है, बल्कि कक्षा में रचनात्मकता और नवाचार भी प्रभावित होते हैं।

शिक्षकों पर यह अविश्वास केवल उनकी पेशेवर गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाता, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। यदि हम चाहते हैं कि हमारी शिक्षा प्रणाली सशक्त और प्रभावी हो, तो शिक्षकों को संदेह की दृष्टि से देखना बंद करना होगा। उन्हें वह स्वायत्तता और सम्मान देना होगा, जिसके वे हकदार हैं। 

शिक्षक समाज के नींव के पत्थर हैं। वे न केवल ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि भावी पीढ़ियों को आकार देते हैं। इसलिए, यह आवश्यक है कि समाज शिक्षकों पर भरोसा करे और उन्हें अपनी कक्षा में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की छूट दे। तभी हम एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का निर्माण कर पाएंगे, जो प्रत्येक बच्चे की अनूठी क्षमताओं को निखार सके और समाज को प्रगति की ओर ले जाए। 

शिक्षकों पर विश्वास करना केवल उनकी जीत नहीं, बल्कि पूरे समाज की जीत होगी। आइए, इस अविश्वास की दीवार को तोड़ें और शिक्षकों को वह स्थान दें, जो उन्हें वास्तव में मिलना चाहिए।

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