सिद्धार्थ बने शिक्षक, शिक्षकों को समझाया

 पटना। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ ने कहा है कि शिक्षक अपनी जिम्मेदारी समझें। उनके कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। बच्चों की शिक्षा और उनका भविष्य संवारने की जिम्मेदारी शिक्षकों की है। शिक्षा से ही राज्य का कायाकल्प होगा। इसकी भी जिम्मेदारी शिक्षकों की ही है।


शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ रविवार को यहां ए. एन. सिन्हा इंस्टीच्यूट में शिक्षकों से मुखातिब थे। डॉ. सिद्धार्थ ने शिक्षक के रूप में समझाने की शक्ल में कहा कि मान लें कि कोई गांव चारों तरफ से पानी से घिरा है और इससे वहां के बच्चे शिक्षा से वंचित हैं, तो इसमें उस गांव के बच्चों और उनके माता-पिता की क्या गलती है? क्या शिक्षा केवल फोरलेन और ऊपरी पुल से जुड़े गांवों के बच्चों का ही अधिकार है ? इन सवालों का जवाब देते हुए डॉ. सिद्धार्थ ने कहा कि पानी से घिरे गांव के बच्चों की शिक्षा की भी जिम्मेदारी शिक्षकों की ही है। शिक्षकों पर सिर्फ फोरलेन और ऊपरी पुल से जुड़े गांवों के बच्चों को ही शिक्षा देने की जिम्मेदारी नहीं है। सभी बच्चों को समान भाव से शिक्षा देने की जिम्मेदारी शिक्षकों की है। चाहे वे बच्चे पहाड़ वाले गांव के हों या नदी वाले गांव के ही क्यों न हों। शिक्षक उन्हें जहां चाहें, बैठा कर पढ़ा सकते हैं। ऐसे बच्चों के बारे में शिक्षक सोचें। यह समझ कर सोचें कि वह उनका बच्चा है। इससे उस बच्चे की वे जिंदगी बना पायेंगे।



डॉ. सिद्धार्थ ने कहा कि शिक्षक की नौकरी सिर्फ नौकरी नहीं है। वह दूसरी सरकारी नौकरियों से अलग है। दूसरी नौकरियां वाले दो, चार, पांच दिन बाद भी संचिकाएं निबटा सकते हैं, लेकिन शिक्षक ऐसा नहीं कर सकते। पानी में या नाव से आने वाले शिक्षक ऐसा नहीं कर सकते कि आज कपड़े गीले हैं, बाद में पढ़ा देंगे। इसलिए कि, बच्चे उन पर टकटकी लगाये बैठे होते हैं।


अपर मुख्य सचिव डॉ. सिद्धार्थ ने कहा कि समाज में छुआछूत व भेदभाव मिटाने की जम्मेदारी भी शिक्षकों की है। शिक्षा से शिक्षक ही सामाजिक स्तर बढा सकते हैं। बच्चों की जिंदगी शिक्षकों के हाथों में है। वही उनकी जिंदगी संवार सकते इ हैं। जात-पात व ऊंच-नीच का भाव शिक्षा से समाप्त कर शिक्षक राज्य का कायाकल्प कर सकते हैं। शिक्षक अपनी जिम्मेदारी समझें। शिक्षकों की जिम्मेदारी सरकार की है, पर उसकी भी अपनी सीमाएं हैं। अगर शिक्षक अचानक कहें कि कैमूर की पहाड़ी पर नहीं जायेंगे, तो फिर वहां बच्चों को पढ़ाने कौन जायेगा, किसी-न-किसी शिक्षक तो जाना ही होगा न !


डॉ. सिद्धार्थ ने शिक्षकों से दो टूक कहा कि कोई नहीं चाहता कि शिक्षा व्यवस्था खराब हो। चाहे वह समाज या विभाग ही क्यों न हो। हर किसी को बेहतर शिक्षा व्यवस्था चाहिये। यह शिक्षकों से ही संभव है। इस जिम्मेदारी को शिक्षक बखूबी निभायें।

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