पिता के बाद मां ही होती है नाबालिग बच्चे की प्राकृतिक अभिभावक : कोर्ट

 मुंबई, पेट्र : बांबे हाई कोर्ट की


औरंगाबाद पीठ ने अपने दादा-दादी के साथ रह रही पांच साल की बच्ची की कस्टडी उसकी मां को सौंप दी है। पीठ ने कहा कि पिता के बाद नाबालिग बच्चे की प्राकृतिक अभिभावक मां ही होती है। जस्टिस एसजी चपलगांवकर की पीठ ने कहा कि हिंदू अल्पव्यस्कता और संरक्षकता अधिनियम के अनुसार, नाबालिग बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक पहले पिता और फिर मां होती है।



हाई कोर्ट ने कहा कि कानूनी तौर पर नाबालिग बच्ची को मां की कस्टडी में दिया जाना चाहिए, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि बच्चे के हित को सुनिश्चित करने में उसकी कोई प्रतिकूल रुचि या अक्षमता है। यह आदेश एक 25 वर्षीय महिला द्वारा दायर याचिका पर पारित किया गया। इसमें जिला अदालत द्वारा अप्रैल, 2025 में दिए गए उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें उसकी पांच साल की बच्ची की कस्टडी की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था। महिला ने अपनी याचिका में कहा कि जब उसका आपसी सहमति से तलाक हुआ था तो उसने अपनी एक साल की बेटी को अपने पति और उसके माता-पिता की देखरेख में रखने पर सहमति जताई थी। हालांकि, इस साल जनवरी में पति की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उसके दादा-दादी ने बच्ची के अभिभावक के रूप में नियुक्ति के लिए आवेदन दायर किया। महिला ने इसका विरोध किया और बच्ची की देखरेख की मांग करते हुए कहा कि दादा-दादी बूढ़े हो रहे हैं और बच्ची की देखभाल नहीं कर पाएंगे। उसने दावा किया कि चूंकि अब वह अच्छी कमाई कर रही है, इसलिए वह अपनी बेटी की देखभाल करने की बेहतर स्थिति में है। हाई कोर्ट ने कहा, "जब लगभग पांच वर्ष की आयु की बालिका की बात आती है तो कोर्ट इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि उसकी अभिरक्षा के लिए मां ही सर्वोत्तम व्यक्ति हो सकती है।






सुप्रीम कोर्ट ने अदालत परिसरों में शौचालयों की कमी पर जताई चिंता




नई दिल्ली, प्रेट्र सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को देश के सभी न्यायालयों और ट्रिब्यूनलों में शौचालय की सुविधा को सुनिश्चित करने के अपने फैसले के बाद 20 हाई कोटों द्वारा अनुपालन रिपोर्ट नहीं दाखिल करने पर अपनी चिंता व्यक्त की और उन्हें ऐसा करने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया। बुधवार को पीठ ने नोट किया कि केवल झारखंड, मप्र, कोलकाता, दिल्ली व पटना के हाई कोटों ने फैसले के निर्देशों का पालन करने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देते हुए हलफनामे दाखिल किए हैं। देश में 25 कुल उच्च न्यायालय है।


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