हमारा बेसिक शिक्षा विभाग इस समय एक अजीब से जाल में फंसा हुआ है। विभाग तो एक है, लेकिन इसके भीतर *नगरीय और ग्रामीण क्षेत्र के* नाम पर एक ऐसा कृत्रिम विभाजन खड़ा कर दिया गया है, जो न सिर्फ अनावश्यक है, बल्कि शिक्षक समुदाय के लिए असमंजस और मानसिक दबाव का कारण भी बन गया है।
एक ही जिले के दो भाग — नगरी और ग्रामीण — ऐसे बँटे हैं जैसे कि वे अलग-अलग राज्य हों।
न तो नगरीय क्षेत्र का शिक्षक ग्रामीण में स्थानांतरण ले सकता है,
और न ही ग्रामीण का शिक्षक नगरी क्षेत्र में।
इसी के साथ एक और उलझन आती है — *”अगड़ा ब्लॉक” और “पिछड़ा ब्लॉक” की संकल्पना!*
शिक्षक समझ ही नहीं पाते कि कौन-सा क्षेत्र क्या है — नगरीय, ग्रामीण, अगड़ा, पिछड़ा?
यह शब्दावली और वर्गीकरण कहीं से भी शिक्षक-हितैषी नहीं है, बल्कि भ्रम, भेदभाव और असमानता को जन्म देती है।
कभी-कभी तो लगता है कि यदि इन दो क्षेत्रों के बीच कोई मुकदमा चल जाए, तो शायद दो BSA की जरूरत पड़े एक ही जनपद में — एक नगरीय क्षेत्र के लिए और दूसरा ग्रामीण के लिए। 😄
ARP को भी लेकर दोनों क्षेत्रो में तलवार खिंच जाती है😃
समाधान क्या है?
👉 इस बंटवारे को समाप्त किया जाए।
👉 पूरे जिले को एक समान, समग्र और एकीकृत शिक्षा क्षेत्र घोषित किया जाए।
👉 स्थानांतरण, पदोन्नति, सुविधा और अन्य प्रक्रियाएँ समान रूप से लागू हों।
*क्योंकि शिक्षक एक हैं, विभाग एक है, तो फिर क्षेत्र और ब्लॉक के नाम पर यह खिंचाव क्यों?*
*दुर्गा शंकर सिंह*